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बरसों लगे.......

आदमी को जानवर से आदमी बन जाने में बरसों लगे. लेकिन अब भी उसे आदमी से जानवर बन जाने में लगता है एक पल.

बेअसर है.

हौसला अफज़ाई करने वाले सब दोस्तों के नाम. तुम्हारा तोलने का है जो आला, उस आले में मेरा वज़न सिफ़र है. बायस-ए-हाल-ए-दुनिया किससे पूछें, यहाँ मालिक मकाँ ही दरबदर है. साथ उसके हुआ शहर का मुंसिफ, क़ातिल-ए-शहर को अब किसका डर है. लिए फ़िरता है परचम दोस्ती का, घाव से आशना उसका जिगर है. यहाँ सब जूझ रहे दौर-ए-गम से, वहाँ हालात की उसको फिकर है. ..........यहाँ तक पढ़ा तो आगे भी हिम्मत कीजिये.......... मेरी दीवानगी हद से है गुज़री, तुम्हारा तंज़ मुझपर बेअसर है. यहाँ मुस्कान की दुनिया है कायल, यहाँ जज़्बात की किसको फ़िकर है.

तुमको और मुझको.

इंसानियत के नाते,अपनी ख़ुदी से प्यार, तुमको भी बेशुमार है,मुझको भी बेशुमार. चोर और लुटेरे में एक को चुन लें, तुमको भी इख़्तियार है, मुझको भी इख़्तियार. राज करने वाले,आला दिमाग़ पर, तुमको भी ऐतबार है, मुझको भी ऐतबार. हम पे चोट कुछ नहीं,मैं पे एक वार, तुमको भी नागवार है,मुझको भी नागवार. हालात को सुधारने आएगा मसीहा, तुमको भी इन्तज़ार है,मुझको भी इन्तज़ार.

और है.

दिल की फ़र्माइश है सर आँखों मगर, एक पूरी हो तो फ़िर इक और है. ख़त्म सुनता था हुए राजा नवाब, पर हक़ीक़ी वाक़या कुछ और है. आदमी अब क्या करे शर्मो लिहाज, जिस भी सूरत जीतने का दौर है. तुम भले इन्कार कर लो आग से, कह रहा उठता धुवाँ कुछ और है. बेअसर है झिंगुरों का सा रियाज़, सुर को साधे जो गला कुछ और है. खुश वो,जो बिक जाए ऊँचे दाम में, आज तो बाज़ार ही सिरमौर है.

बदगुमान कहे.

अता हुआ है आदमी को ऐसा मुस्तक्बिल, पा जाये सब, मगर पा कर भी परेशान रहे. फ़िक्र में डूब रहे सब अदीब-ओ-दानिशमन्द, एक ग़ाफ़िल को मगर पूरा इत्मिनान रहे. कहर देखा तेरा, तेरी नवाज़िशें देखीं, कोइ दो चार दिन हम भी तेरे मेहमान रहे. कोई तो सीख गया चन्द किताबी बातें. किसी के हिस्से ज़िन्दगी के इम्तिहान रहे. आज जी आया जी भर के जी की बात कहूँ, जी में आए तो मुझे कोई बदगुमान कहे.

खेल खेल में.

हमारे देश में आजकल ४ खेल चर्चा में हैं. इनमें से २ अन्तर्राष्ट्रीय हैं और २ राष्ट्रीय. कामनवेल्थ और आतंकवाद अन्तर्राष्ट्रीय खेल हैं, जिनमें परस्पर प्रतिस्पर्धा दिखाई देती है. अयोध्या पर फ़ैसला एवं बाढ़ राष्ट्रीय खेल हैं, जिनमें परस्पर यह सम्बन्ध है कि दोनों ही मासूम ज़िन्दगियाँ लीलने को आतुर हैं. इन ४ खेलों के बहाने कई ’उप-खेल’ भी खेले जा रहे हैं जिन से समाज के अगुवाओं के आर्थिक एवं राजनीतिक लाभ पर असर पड़ता है. इन खेलों से आम जनों के जीवन पर भी व्यापक असर पड़ता है परन्तु वह महत्वपूर्ण नहीं माना जाता. उनके जीवन पर तो छोटी-छोटी बातों,उदाहरण के लिये-तेल के दाम बढ़ जाना अथवा गोदामों की कमी के कारण अनाज का सड़ जाना, से भी व्यापक असर पड़ जाता है. तो पहले हम अन्तर्राष्ट्रीय खेलों की बात करते हैं. राष्ट्रकुल उन राष्ट्रों का समूह है जो कभी साम्राज्यवादी युग में ब्रितानी हुकूमत के आधीन थे. यह देश आपस में खेल खेलते हैं. इन खेलों के आयोजन को ’कामनवेल्थ गेम्स’ कहा जाता है. बड़ी मुश्किलों से हमारा देश इस बार इन खेलों के आयोजन पर अधिकार कर पाया है. कहा जाता है कि इस आयोजन से देश में पर्यटकों की संख्

सुना है...

"बबा,हो सकता है कि इस में तुम जीत जाओ, पर मक़सद हार जाएगा". तब ही समझ गया था कि ये आदमी अपनी जीत पर नहीं,समाज की जीत पर विश्वास करता है. दो तीन वर्ष ही हुए थे उनसे मुलाक़ात हुए. उन्हें देखते, उनके बारे में सुनते सुनते ना जाने कितने बरस हो गये थे. जो कुछ भी काला सफ़ेद सुना था उनके बारे में, वो देख भी रहा था,और अपनी बुद्धी की सीमारेखा में उसका आँकलन भी कर रहा था. उनके आन्दोलनरत कलाकार रूप और कवित्त पर टिप्पणी करने योग्य खुद को समझना मेरी मूर्खता होगी. उन्हं प्रिय कहना चाहूँगा, मार्गदर्शक कहना चाहूँगा,प्रेरणास्रोत कहना चाहूँगा. उन्होंने कई बार हमारी कोशिशों की पीठ थपथपाई और अनेकों बार दिशादर्शन के लिये उनके कान भी उमेठे. सुनता हूँ की भूतकाल में उनकी कोशिशों को इस तरह की सहूलियत नहीं मिली. इसके उलट, जब वो रंगभूमि की तलाश में थे, एक नामी गिरामी संस्था ने उनके लिये प्रवेश निषिद्ध किया. उनकी सारी अच्छाई , क़ाबिलियत, सादगी, क्षमता और व्यक्तित्व एक ओर, और उनकी मयनोशी एक ओर. तत्कालीन रंगकर्म के ठेकेदारों ने आदत को फ़ितरत से ज़्यादा महत्व दिया. रंग का सर्जक और दर्शक, दोनों ही लम्बे अर्से तक

परिभाषाएँ

पन्द्रह अगस्त और छ्ब्बीस जनवरी को, झन्डा फ़हराकर देशप्रेम के गीत सुनना, देशभक्ति कहलाता है. पर्यावरण दिवस पर पौधे रोपकर, उन्हें हमेशा के लिये भूल जाना, व्रिक्षारोपण कहलाता है. जनप्रतिनिधियों का स्वयमेव, अपनी तनख़्वाह तय कर लेना, प्रजातन्त्र कहलाता है. परस्पर हित साधन के लिये, दो व्यक्तियों का आपसी सम्पर्क, मित्रता कहलाता है. नरभक्षियों द्वारा अपना भोजन, काँटे-छुरी प्रयोग कर खाना, विकास कहलाता है. क्रमशः

गिर्दा

तुम हमेशा पहाड़ में रहे, उसके सभी सरोकारों में रहे, चाहते तो सरोकारों की जगह, सरकारों में भी रह सकते थे. बाढ़ पर उत्तरकाशी रहे, पेड़ कटने पर जंगल में. भीड़ में लाठियाँ खाते रहे, भीड़ पर राज कर सकते थे. तुम जन की आवाज़ में रहे, आवाज़ के शब्दों में रहे, होली गाई, तो जाग्रिति की, रंग बरसे भी गा सकते थे. तुम इतिहास बनते-बनाते रहे. तुम विश्वास बनते बनाते रहे. हमेशा सुनाई,मनवाई नहीं, चाहते तो मनवा सकते थे. तुम लिखते लिखते गीत हो गए, तुम गा गा कर संगीत हो गए, तुम रंगकर्मी के कर्म में रहे, उसके ग़ुरूर में रह सकते थे. पहाड़ का सरोकार,पहाड़ के जन की आवाज़,पहाड़ का गीत मर नहीं सकता.गिर्दा तुम मर नहीं सकते.तुम ज़िन्दा हो और सदा रहोगे.

बखतक दगिड़ हिटौ.?

पछिनैं छूट जाला,बखतक दगिड़ हिटौ, नान्तरी पछताला,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैकि सारी माया,बखतैकि धूप छाया, बखतक हँसी आँसू,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैली घाव करौ,बखतैली घाव भरौ, बखतैकीं कैल जितौ,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैल राज बणाईं,बखतैल रंक करौ, बखतैल राज करौ,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैल भगत देखौ,भगतैल बखत देखौ, अफ़ुँ लै बखत देखौ,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैल न्योल गाई,बखतैल झ्वाड़ लगाईं, बखत ’कमीना’ गानौ,बखतक दगिड़ हिटौ.

सवाल

सवाल क्यों न उठे राहबर की नीयत पर, मैं हूँ परवाना, मुझे रोशनी दिखाता है. वो खिलाड़ी ज़रूर खेल से भी ऊपर है, खेल से पहले कोई खेल खेल जाता है. यों कोई पेश नहीं आता है माँ के साथ, यहाँ का आदमी नदी को माँ बताता है.

ओ बादल

ओ बादल,आजकल तुम हमारे शहर का रास्ता भूल गये हो , कभी आ भी जाते हो तो बरसना,भिगोना भूल जाते हो. तुम आओगे,ये सोचकर हमने चार लेन की सड़कें बनाईं, स्वागत देखना छोड़,तुम काटे गये पेड़ों को गिनते रहते हो. हमने तुम्हारे लिये गाड़ियाँ बनाई,आराम से आओगे सोचकर, गाड़ि छोड़,तुम गाड़ी के पीछे छूटने वाला धुआँ देखते रहते हो. हमने तुम्हारी सहूलियत के लिये एसी का इन्तजाम भी किया, हमारी नीयत देखना छोड़,तुम पर्यावरण वाले गीत गाते रहते हो. ओ बादल,आजकल तुम चुनावी नेता जैसा बर्ताव करने लगे हो, घुमड़ कर आते हो,गरज कर आश्वासन देते हो,मुड़कर चले जाते हो. अब हम जंगल काट कर वहाँ नई सड़कें बनाने में लगे हुए हैं, शहर की सड़कें देख कर नाराज़ हो,क्या पता इस रास्ते से आ जाओ.

गड़बड़ा

वो आमतौर पर जो लोग बड़बड़ाते हैं, हम उसे शेर बता,तुमको गड़बड़ाते हैं. ज़रा रुक और दिल में झाँक कर देख, कितने अरमान यहाँ पंख फड़्फड़ाते हैं. अपने हालात में क्या क्या पचाए बैठे हैं, ग़ुस्सा आ भी जाए,यों ही बड़बड़ाते हैं. बसंत रुत में जब फूल नए आते हैं, वो कहीं बैठ कर हिसाब गड़बड़ाते हैं. वो उनके हाथ में चप्पू मेरी नाव का है, ज़रा सी तेज़ हवा में जो हड़्बड़ाते हैं. यहाँ तो शाह का ईमान डोल जाता है, ग़नीमत है मेरे बस पैर लड़खड़ाते हैं.

म्यर कूमाऊँ का.

हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का, सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का. वाँ चाओ कैसी है रै बहारा, बाट लागि छन यो नौला गध्यारा. लाल गाल ठुम्कि चाल. लाल गाल ठुम्कि चाल, म्यर कूमाऊँ का. हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का, सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का. कोयलै कूक और घूघुति पुकारा सुरीलि हवा में झूमनि द्योदारा सुर-ताल हाय कमाल, सुर ताल हाय कमाल, म्यर कूमाऊँ का. हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का, सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का. हिमाला का पाणी अम्रितै धारा, याँ धूप गुनगुनी छू ठन्डी बयारा, जो लै आल गीत गाल जो लै आल गीत गाल. म्यर कूमाऊँ का. हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का, सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का. बुराँश फ़ुलि रूँ जस लाल अनारा, काफ़ला हिसालु की बात छु न्यारा,

लोग

संगीत सभा में, सम से दो मात्रा पहले, ताली देने वाले लोग. उन्यासी या इक्यासी, अंगेज़ी में बताओ, कहने वाले लोग. अपनी धुन छोड़, पराई धुन पर, थिरकने वाले लोग. मंदिर की क़तारें तोड़कर, दर्शन पा कर, धन्य होने वाले लोग. रात के अंधेरे में, तरह तरह से, लूट लेने वाले लोग. तिफ़्ल को कूड़ेदानों, पर बेफ़िक्र होकर, फ़ेंक जाने वाले लोग. महापंचयतों में, विभिन्न मुद्राओं में, मुद्रा लहराने वाले लोग. घर की ख़बरें, साहूकार के पास, देकर पाने वाले लोग. एक ख़बर को, बहुत बेख़बरी से, दबा देने वाले लोग. मेरे और आप से, दुनिया में रहने वाले, दुनिया के वाले लोग. हर्षवर्धन.

शराब

मुझको मत पी बहुत खराब हूँ मैं, तुझको पी जाउँगी,शराब हूँ मैं. मेरा वादा है अपने आशिकों से, रुसवा कर जाउँगी,शराब हूँ मैं. है बदन और दिमाग़ मेरी गिज़ा, नोश फ़रमाउँगी,शराब हूँ मैं. तुम मुझे क्या भला ख़्ररीदोगे, तुम को बिकवाउँगी,शराब हूँ मैं.

ब्लाग

उसने ब्लाग पर , अपनी पहली कविता सुबह सात बजे पोस्ट की थी. उसकी सोच के, सीमान्त तक भी, कविता में कोई नुक़्स, ढूँढे नहीं मिलता था. कविता में व्यंग, अपनी गुदगुदाती, चुभाती,चिढाती, अदा के साथ मौज़ूद था. टैक्नीकली भी, उसे हिन्दी मास्साब, ने विश्वास दिलाया, कविता ऐब्सोल्यूट्ली फ़्लौलेस थी. उसे विश्वास था, वो विशिष्ठ मस्तिष्कों, के आकर्षण का केन्द्र, बन जाने के लायक कविता थी. कविता में, पहाड़ी नदी की, लय थी,चंचलता थी, कविता अनूठी थी ऐसा वो सोचता था. खैर..... कविता पोस्ट करते ही, उसने इन्टर्नेट की, दुनिया में विचरने वाले, सभी परिचित प्राणियों को, पोक करके,वौल पर लिख कर, मैसेज से और ई-मेल से, सूचित कर दिया. उसे कौमेन्ट्स की पतीक्षा थी, ढेर सारे कौमेन्ट्स, तालियों जैसे कौमेन्ट्स, पंखों जैसे कौमेन्ट्स, स्पाट लाइट जैसे कौमेन्ट्स. बार बार पेज रीफ़्रेश, करता था और नज़र, जाती थी कौमेन्ट्स पर, उम्मीदों से भरी नज़र, पर लौट आती थी निराश. हम फ़लाँ वेब्साइट पर, आपका स्वागत करते हैं, बस एक यह मैसेज, उसे कुरुपा के मुँह चिढाते, आईने जैसा लगने लगा था. तीन घण्टे...... और एक भी कौमेन्ट, पोस्ट पर न था, जी ब

दोस्ती ख़त्म.

तुम्हारी मेरी दोस्ती आज से ख़त्म. कारण. जब भी दाद की आरज़ू में मैंने कोइ शेर पढ़ा , तुम और सभी लोगों की तरह खामखाँ हँसते रहे. तुम्हारी ईमानदारी ने तुम्हारा हाजमा खराब किया है, मेरा ज़रा सा झूठ तुम्हारे पेट में ऐंठन पैदा करता है. तुम मेरे अहं की ज़रा सी भी परवाह नहीं करते हो, मेरी मदद लेने में तुम्हारी खुद्दारी आड़े आ जाती है. मैं सारा दिन जिन सुडोकू पहेलियों को सुलझाता हूँ, उन्हें तुम बेदर्दी से वक़्त की बर्बादी करार देते हो. मैं सुभीते के साथ अपने पिता के पैरों पर चलता हूँ, तुम मुझे खुद के पैरों पर खड़े होने की सलाह देते हो. जो डिग्रियाँ मेरे बैठक की दीवरों पर शान से सजी हैं, तुम जानते हो उन्हें मैंने किन तरकीबों से हासिल किया है. मौका आने पर तुमने हमेशा नमकीन की पेशकश की, असली मद का खर्च हमेशा मेरी ही जेब से हुआ. इसलिये तुम्हारी मेरी दोस्ती आज से ख़त्म हर्षवर्धन.

श्रेय-सज़ा

मैंने छुपाकर कई काम ऐसे किये, जो आमतौर पर लोग दिखाकर करते. मैंने छुपाकर कई काम ऐसे किये, जो शायद लोग भी छुपाकर करते. पहले वाले कामों का श्रेय नहीं मिला, दूसरे वाले कामों की सज़ा नहीं मिली. हर्षवर्धन.

पूछता है दिमाग़ का पहरा

पूछता है दिमाग़ का पहरा, नक़ाब है या आईना चेहरा. उरवाँ रह गया हक़दार का सर, सज गया और किसी सर सेहरा. सूरते हाल का बायस क्या है, रिआया गूँगी या हाक़िम बहरा. दिलाये याद सबक दोस्ती का, पीठ पर ज़ख्म है बड़ा गहरा. हर्षवर्धन.

जाते हैं.

एक झूला कल की आस झूलते जाते हैं, हम अपना इतिहास भूलते जाते हैं. खरबूजों की बात छोड़िये दुनिया में, आसमान भी रंग बदलते जाते हैं. हैं कुछ ऐसे सम्हल सम्हल कर गिरते हैं, कुछ ऐसे गिर गिर के सम्हलते जाते हैं. आज फिर नए फूल खिले हैं बगिया में, जाते जाते लोग मचलते जाते हैं. पाप पुण्य की हथेलिओं के बीच दबे, मेरे सब अरमान मसलते जाते हैं. जीत सका है कौन वक़्त की महफ़िल में, खेल,जुआरी,दाँव बदलते जाते हैं. हर्षवर्धन.

क्या देखा?

हम से मत पूछिये साहब के हम ने क्या देखा, हम ने दुनिया के रंग-ओ-बू का तमाशा देखा. भरी बहार में देखे कई ग़ुल मुरझाते, कागज़ी फूलों को ग़ुलदानों में सजता देखा. दहेज़ लेता हुआ मजनूँ हम को आया नज़र, हम ने एक लैला को तन्दूर में जलता देखा. हम्ने देखी है एक हद से गुजरती हुई भूख, तिफ़्ल का ग़ोश्त भी बाज़ार में बिकता देखा. हुआ जब किस्सा-ए-तिज़ारते ताबूत का ज़िक्र, हमने सरहद पर अपना लाडला डटा देखा. हम से मत पूछिये साहब के हम ने क्या देखा, हम ने दुनिया के रंग-ओ-बू का तमाशा देखा.

अध्ययनशाला.

हमारे स्कूल में सारे क्लासेस ए.सी. हैं, ब्लैकबोर्ड की जगह प्रोजेक्टर इस्तेमाल होते हैं, तैराकी,घुडसवारी,बिलिअर्ड्स,स्क्वैश,गोल्फ़ की सुविधा है, सब छात्रों को लैप्टौप दिया जाता है. अंग्रेजी के इतर भाषा का प्रयोग वर्जित है. विदेशी भाषा भी सिखाई जाती है, स्कूल कि युनिफ़ोर्म नामी डिज़ाइनर की है, पार्किंग,औडिटोरियम,जिम्नेसिअम,इन्टेर्नेट. क्या नहीं है हमारे पास. आप ऐड्मिशन लीजिये, हम कुछ अच्छे शिक्षक भी ढूँढ लेंगे.

जब जब मन्दिर मस्ज़िद टूटे,हमने फोटो खींच ली,

जब जब मन्दिर मस्ज़िद टूटे,हमने फोटो खींच ली, जब अपने अपनो से रूठे,हमने फोटो खींच ली, मिलकर उसको लूट रहे थे,बूढी मा से रूठ रहे थे, जब तुम भाइ लडे आपस मे,हमने फोटो खींच ली. पहले पहल वो उनसे मिलना,प्यार के पहले फूल का खिलना, जब तुम पहली पिकनिक में थे,हमने फोटो खींच ली. चाँदी की भारी खन खन में,प्रेम गीत को भूले क्षण में, जब तुम अपने फेरों पर थे,हमने फोटो खींच ली. पहली घूस जो तुमने दी थी,पहली घूस जो तुमने ली थी, जब तुम पहली कार में बैठे,हमने फोटो खींच ली. तुमने जुगत लगानी ही थी,पदोन्न्ती तो पानी ही थी, जब जब तुमने जुगत लगाइ,हमने फोटो खींच ली. जब तुमने हथियार खरीदे,एक नही सौ बार खरीदे, जब जब तिलक लगा थैली का,हमने फोटो खींच ली. हर्षवर्धन.

मिटटी के गोले में आग भरे बैठा है

मिटटी के गोले में आग भरे बैठा है, फ़िर भी धन-ऋण-गुणा-भाग करे बैठा है. नक़्शे मिटाकर फिर नक़्शे बनाने को, ख़ुद पर ही दाग़ने बारूद भरे बैठा है. हर एक पर हर कोई उंग्लियाँ उठाता है, हर कोइ हाथों पर हाथ धरे बैठा है. चाँद पर तो पहुँचा पर अक़्ल नहीं आई है, मकाँ ठन्डे सारी दुनिया ग़र्म करे बैठा है. गन्डे-तावीज़ों से अब भी बहल जाता है, सारी पढ़ाई फिज़ूल करे बैठा है. हर्षवर्धन.

मेरे भाई.

तुम खुद से कुछ बेइमानी तो करते हो, खूबी तुम में लाख सही मेरे भाई. वक़्त रहा पर हक़ यारों का नही रहा, ले लेते कुछ खोज-खबर मेरे भाई. सदर बने जो वो तो ऐसे ख़ास न थे, जो देखे हैरान समय की चतुराई. जाम रहे पर हमप्याले वो नही रहे, शाम तुम्हारी ख़ूब रही मेरे भाई. ख़्वाब रहे पर ख़्वाब हमारे बिछुड़ गए, राह ये तुमने ख़ूब चुनी मेरे भाई. साथ रहा पर साथ हमारा नहीं रहा, दिल की दिल सुनता तो था मेरे भाई. बात रही पर बीच हमारे नहीं रही, तेरी इमारत ख़ूब बनी मेरे भाई. हर्षवर्धन.

पिन्जरे में क़ैद है.

क्या रोशनाई आपकी, गिरवी है कहीं पर, वर्ना ग़ज़ल का शेर, क्यों पिन्जरे में क़ैद है. नाड़ी टटोलना भी, उसको नहीं आता, वैसे वो मेरे गाँव का, सयाना वैद है. उँगली बहुत उठाई तूने, मेरे खेल पर, कर के दिखा, अब तेरे पाले में गेंद है. तूने जो हाथ पोंछे, लिबास-ए-यार पर, यूँ ही तो नहीं पैरहन, तेरा सुफ़ैद है. मेज़ पर जमी थी मैख्वारों की टोली, दीवार पर लिखा था,मदिरा निषेध है. अक्ल रख छोड़ी है अपनी, ताक पर मैंने, बची खुची पेट के झगड़े में क़ैद है.

Introduction

I am from Nainital, Uttarakhand and have in the past benn intrumental in creating "Aaj kainchi dham mein".A bhajan album dedicated to Baba neem karori maharaaj.Recently I have made a film called "Pahari filam" which comically reflects the condition of film and film makers in uttarakhand. To watch some of the artwork http://www.orkut.co.in/Main#FavoriteVideos?uid=2927706194026738318