ब्लाग

उसने ब्लाग पर ,
अपनी पहली कविता
सुबह सात बजे पोस्ट की थी.

उसकी सोच के,
सीमान्त तक भी,
कविता में कोई नुक़्स,
ढूँढे नहीं मिलता था.

कविता में व्यंग,
अपनी गुदगुदाती,
चुभाती,चिढाती,
अदा के साथ मौज़ूद था.

टैक्नीकली भी,
उसे हिन्दी मास्साब,
ने विश्वास दिलाया,
कविता ऐब्सोल्यूट्ली फ़्लौलेस थी.

उसे विश्वास था,
वो विशिष्ठ मस्तिष्कों,
के आकर्षण का केन्द्र,
बन जाने के लायक कविता थी.

कविता में,
पहाड़ी नदी की,
लय थी,चंचलता थी,
कविता अनूठी थी
ऐसा वो सोचता था.

खैर.....

कविता पोस्ट करते ही,
उसने इन्टर्नेट की,
दुनिया में विचरने वाले,
सभी परिचित प्राणियों को,
पोक करके,वौल पर लिख कर,
मैसेज से और ई-मेल से,
सूचित कर दिया.

उसे कौमेन्ट्स की पतीक्षा थी,
ढेर सारे कौमेन्ट्स,
तालियों जैसे कौमेन्ट्स,
पंखों जैसे कौमेन्ट्स,
स्पाट लाइट जैसे कौमेन्ट्स.

बार बार पेज रीफ़्रेश,
करता था और नज़र,
जाती थी कौमेन्ट्स पर,
उम्मीदों से भरी नज़र,
पर लौट आती थी निराश.

हम फ़लाँ वेब्साइट पर,
आपका स्वागत करते हैं,
बस एक यह मैसेज,
उसे कुरुपा के मुँह चिढाते,
आईने जैसा लगने लगा था.

तीन घण्टे......
और एक भी कौमेन्ट,
पोस्ट पर न था,
जी बहलाना था,
सोच लिया कि सर्वर,
डाउन है.

पर मन में,
डर था.
अगले दो घण्टों तक
उसने फ़िर से.
पोक करके,वौल पर लिख कर,
मैसेज से और ई-मेल से,
सबको सूचना भेजी.

इस बीच कई बार,
कौमेन्ट्स की आस में,
उस निष्ठुर पेज पर भी,
उसका अशान्त आवागमन,
चलता रहा.
जब तक कि उसने ,
खिन्न हो कर,
कम्प्यूटर बंद न कर दिया.

उसका मन,
नहीं लगा.
न घर में,
ना दोस्तों में,
न हि उस फ़िल्म में,
जिसे देखने वो,
बिना सोचे-समझे,
चला आया था.

उसने फ़िर कम्प्यूटर खोला,
साईट खोली,
डर था कौमेन्ट्स,
नहीं होंगे.
उत्सुकता थी
कौमेन्ट्स होंगे.

एक सपना
दाँव पर लगा था.
सपना जिसमें,
नाम था,
सम्मान था,
दाम था,
मन्च थे,
श्रोता थे.

कौमेन्ट्स थे,
पाँच कौमेन्ट्स,

"सुन्दर है"
"बहुत खूब"
"अच्छा प्रयास है"
"आपकी कविता बहुत सुन्दर है,
आशा है आप मेरे ब्लाग पर,
आ कर मेरी कविताएँ,
पढेंगे और कौमेन्ट देंगे."
"बेटी चहक रही थी,
विदाई की बेला में,
बाप की आँखो में भी,
आँसू नहीं आ पाए.
"आपकी कविता में,
कन्या की विदाई का,
ऐसा भावरहित चित्रण,
प्रकट करता है कि,
आपने दहेज का ज़िक्र,
न कर के भी,
इस समस्या के विरोध
में क़लम उठाई है............."

सपना टूटा,
या नहीं?

पता नहीं,

पर कौमेन्ट्स तो
मिले ही थे.

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