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तुमको और मुझको.

इंसानियत के नाते,अपनी ख़ुदी से प्यार, तुमको भी बेशुमार है,मुझको भी बेशुमार. चोर और लुटेरे में एक को चुन लें, तुमको भी इख़्तियार है, मुझको भी इख़्तियार. राज करने वाले,आला दिमाग़ पर, तुमको भी ऐतबार है, मुझको भी ऐतबार. हम पे चोट कुछ नहीं,मैं पे एक वार, तुमको भी नागवार है,मुझको भी नागवार. हालात को सुधारने आएगा मसीहा, तुमको भी इन्तज़ार है,मुझको भी इन्तज़ार.

खंज़र न मार.

मुफलिसी से बेदिली, पसरी थी घर में, चार सू, आज वो बाज़ार से, ले आया कुछ रुपयों का प्यार. जिस्म है, ज़मीर भी, ममता भी, बिकने में शुमार, वाह री दुनिया की तिज़ारत, आह इसका कारोबार. है सभी कुछ पास, या, कुछ भी नहीं है इसके पास, इक मरुस्थल के लिए, क्या है खिज़ा, है क्या बहार. लुट भी जाने दो, दीवाने को, भरे बाजार में, यार से, गमख्वार से,कब तक रहे वो होशियार. रहबरी से राहबर, बेज़ार मुझको यूँ न कर, थपथपाने के बहाने, पीठ पर खंज़र न मार. मुफलिसी=गरीबी, चार सू=हर तरफ़, तिज़ारत=व्यापार, खिज़ा=पतझड़, घम्ख्वार=दुःख का सांझेदार, रहबरी=नेतृत्व, राहबर=नेतृत्व करने वाला, बेज़ार=उदासीन.

शहर रुसवा हो गया

मुतमईन थे लोग, जब तक लड़ रहे थे आप मैं, प्यार जो हम में बढ़ा, तो शहर रुसवा हो गया. देखिये नाज़ुक है कितनी, फिरकापरस्तों की नाक, तुम जो मुझसे मिलने आये, शहर रुसवा हो गया. चैन था की एक अंधा बाँटता था रेवड़ी, देख कर बंटने लगी, तो शहर रुसवा हो गया. दाम बढता ही रहा, हर शै का, पर चलता रहा, जब पसीने का बढ़ा, तो शहर रुसवा हो गया. लुत्फ़ जिन बदनाम गलियों का अँधेरे में लिया, गलियाँ वो रोशन हुईं, तो शहर रुसवा हो गया. बातों में सब कर रहे थे पैरवी इन्साफ की, न्याय की चलने लगी तो शहर रुसवा हो गया. उसके हिस्से तंज़ थे गैरों के भी अपनों के भी, उसने जब अपनी कही, तो शहर रुसवा हो गया.

क्रिकेटनीती

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नेट प्रक्टिस से दोस्तों , चले नहीं अब काम , पिच पर आ दे दीजिए , सपने सर-अंजाम. बाउंडरी पर लीजिए , बेईमानों का कैच , सही वक्त है देश को , जिता दीजिए मैच. रष्टाचारी कौम को , करिये अब रन आउट , मिलने ना पाए इन्हें , बेनेफिट ऑफ डाऊट. संसद में कोई अगर , फेंके जो नो बौल , अम्पायर बन जाइये , करिये फाउल कॉल. मैच फिक्स होते रहे , अगर इलेक्शन बाद , खिचड़ी सरकारें बनें , देश करें बरबाद.

अखबार

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अखबार में लिपटी थी , कुछ दिन की बासी रोटी, अखबार कह रहा था , कम हो गयी गरीबी . गुलाब सी फितरत है, काँटों से घिर गया हूँ, जो काँटा चुभ रहा है, वो है मेरा करीबी. ताना बाना लेकर, जो पैरहन * बुनता है, उसका बदन है नंगा, ये कैसी बदनसीबी. मैं सारे ज़माने के रंगों से होली खेलूँ रंग अपना भूल जाऊँ, ऐसा न हो कभी भी. सब गुजर रहे हैं, लगता है कि वो गुजरा, है वक्त नाम जिसका, उसकी यही है खूबी. * वस्त्र. कार्टून बामुलाहिजा से साभार.

होली पर “ई-मेल”.

मैं भी सैंय्या समझ गयी हूँ इंटरनेट का खेल , इस होली भेजूँगी तुमको प्यार भरा “ ई - मेल ” . अबीर, गुलाल के दो थैले, “अटैच” कर दूँगी, इस होली बतला दूँगी मैं क्या है ये “फीमेल”. मैं भी सैंय्या समझ गयी हूँ इंटरनेट का खेल ........ “ट्विटर”, “फेसबुक”, पर अब मेरा, पता दर्ज है, जान रहूँगी क्या करते रहते हो दिन भर खेल. मैं भी सैंय्या समझ गयी हूँ इंटरनेट का खेल ......... “टाइमलाइन” और “वॉल” पे मैं, कर लूँगी कब्ज़ा, तेरे “सिंगल” इस्टेटस का “फंडा” होगा “फेल”. मैं भी सैंय्या समझ गयी हूँ इंटरनेट का खेल ............. “नोटीफिकेशन” और “मैसेज” पर पक्का पहरा होगा, यूँ ही शायद पड़ जाए कुछ, तेरी नाक नकेल. मैं भी सैंय्या समझ गयी हूँ इंटरनेट का खेल ............. हर्षवर्धन