सवाल

सवाल क्यों न उठे राहबर की नीयत पर,
मैं हूँ परवाना, मुझे रोशनी दिखाता है.

वो खिलाड़ी ज़रूर खेल से भी ऊपर है,
खेल से पहले कोई खेल खेल जाता है.

यों कोई पेश नहीं आता है माँ के साथ,
यहाँ का आदमी नदी को माँ बताता है.

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वक्त के पाँव का वो आबला.

और है.

तुमको और मुझको.