बीच दोनों के एक इश्क की नदी है जरूर, यूँ समंदर को हिमालय नहीं पिघलते हैं. आन एक ऐसा खिलौना है,जिसकी खातिर, बुजुर्गवार भी बच्च्चों की ढब मचलते हैं. मेरे मंदिर के दिये,और तेरी मस्ज़िद के चिराग, बहुत आँधी चली पर साथ साथ जलते हैं. तुम अपनी रौ बहे तो हम भी अपनी रौ बहके, सम्हलते आप वहाँ हम यहाँ सम्हलते हैं. खुदा ही जाने के ये दोस्त कहाँ पहुँचेंगे, मंजिलें दो हैं, मगर साथ साथ चलते हैं. मेरे पैरों में है दस्तूर की ज़ंजीर मगर, मेरे अरमान इक उड़ान को मचलते हैं.
हर्ष जी
जवाब देंहटाएंसटीक कहा आपने.....बुनियादी गुण इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ते :) ...करारा व्यंग ...आदमी और उसकी आदमियत पर
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंनववर्ष की शुभकामनायें ।
सदा जी मुदिता जी बहुत बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसटीक ...सुन्दर शब्द चित्र
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनाएँ
बिल्कुल सही.
जवाब देंहटाएंनववर्ष आपको शुभ हो...
वाह वाह, क्या सच्चाई बयान की है आपने.वो भी इतने कम शब्दों में.
जवाब देंहटाएंaur ab wo phir janwar hai yaa asur
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,सुशील जी ,कुंवर जी,रश्मि जी और संजय जी.
जवाब देंहटाएंआप से सुधिजन जब प्रेरणा देते हैं तो बल मिलता है.
धन्यवाद