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अगस्त, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

परिभाषाएँ

पन्द्रह अगस्त और छ्ब्बीस जनवरी को, झन्डा फ़हराकर देशप्रेम के गीत सुनना, देशभक्ति कहलाता है. पर्यावरण दिवस पर पौधे रोपकर, उन्हें हमेशा के लिये भूल जाना, व्रिक्षारोपण कहलाता है. जनप्रतिनिधियों का स्वयमेव, अपनी तनख़्वाह तय कर लेना, प्रजातन्त्र कहलाता है. परस्पर हित साधन के लिये, दो व्यक्तियों का आपसी सम्पर्क, मित्रता कहलाता है. नरभक्षियों द्वारा अपना भोजन, काँटे-छुरी प्रयोग कर खाना, विकास कहलाता है. क्रमशः

गिर्दा

तुम हमेशा पहाड़ में रहे, उसके सभी सरोकारों में रहे, चाहते तो सरोकारों की जगह, सरकारों में भी रह सकते थे. बाढ़ पर उत्तरकाशी रहे, पेड़ कटने पर जंगल में. भीड़ में लाठियाँ खाते रहे, भीड़ पर राज कर सकते थे. तुम जन की आवाज़ में रहे, आवाज़ के शब्दों में रहे, होली गाई, तो जाग्रिति की, रंग बरसे भी गा सकते थे. तुम इतिहास बनते-बनाते रहे. तुम विश्वास बनते बनाते रहे. हमेशा सुनाई,मनवाई नहीं, चाहते तो मनवा सकते थे. तुम लिखते लिखते गीत हो गए, तुम गा गा कर संगीत हो गए, तुम रंगकर्मी के कर्म में रहे, उसके ग़ुरूर में रह सकते थे. पहाड़ का सरोकार,पहाड़ के जन की आवाज़,पहाड़ का गीत मर नहीं सकता.गिर्दा तुम मर नहीं सकते.तुम ज़िन्दा हो और सदा रहोगे.

बखतक दगिड़ हिटौ.?

पछिनैं छूट जाला,बखतक दगिड़ हिटौ, नान्तरी पछताला,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैकि सारी माया,बखतैकि धूप छाया, बखतक हँसी आँसू,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैली घाव करौ,बखतैली घाव भरौ, बखतैकीं कैल जितौ,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैल राज बणाईं,बखतैल रंक करौ, बखतैल राज करौ,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैल भगत देखौ,भगतैल बखत देखौ, अफ़ुँ लै बखत देखौ,बखतक दगिड़ हिटौ. बखतैल न्योल गाई,बखतैल झ्वाड़ लगाईं, बखत ’कमीना’ गानौ,बखतक दगिड़ हिटौ.

सवाल

सवाल क्यों न उठे राहबर की नीयत पर, मैं हूँ परवाना, मुझे रोशनी दिखाता है. वो खिलाड़ी ज़रूर खेल से भी ऊपर है, खेल से पहले कोई खेल खेल जाता है. यों कोई पेश नहीं आता है माँ के साथ, यहाँ का आदमी नदी को माँ बताता है.