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जून, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

म्यर कूमाऊँ का.

हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का, सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का. वाँ चाओ कैसी है रै बहारा, बाट लागि छन यो नौला गध्यारा. लाल गाल ठुम्कि चाल. लाल गाल ठुम्कि चाल, म्यर कूमाऊँ का. हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का, सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का. कोयलै कूक और घूघुति पुकारा सुरीलि हवा में झूमनि द्योदारा सुर-ताल हाय कमाल, सुर ताल हाय कमाल, म्यर कूमाऊँ का. हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का, सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का. हिमाला का पाणी अम्रितै धारा, याँ धूप गुनगुनी छू ठन्डी बयारा, जो लै आल गीत गाल जो लै आल गीत गाल. म्यर कूमाऊँ का. हरिया यो पहाड़ा.. कूमाऊँ का, सीढ़ीदारा खेत देखो म्यर गौं का. बुराँश फ़ुलि रूँ जस लाल अनारा, काफ़ला हिसालु की बात छु न्यारा,

लोग

संगीत सभा में, सम से दो मात्रा पहले, ताली देने वाले लोग. उन्यासी या इक्यासी, अंगेज़ी में बताओ, कहने वाले लोग. अपनी धुन छोड़, पराई धुन पर, थिरकने वाले लोग. मंदिर की क़तारें तोड़कर, दर्शन पा कर, धन्य होने वाले लोग. रात के अंधेरे में, तरह तरह से, लूट लेने वाले लोग. तिफ़्ल को कूड़ेदानों, पर बेफ़िक्र होकर, फ़ेंक जाने वाले लोग. महापंचयतों में, विभिन्न मुद्राओं में, मुद्रा लहराने वाले लोग. घर की ख़बरें, साहूकार के पास, देकर पाने वाले लोग. एक ख़बर को, बहुत बेख़बरी से, दबा देने वाले लोग. मेरे और आप से, दुनिया में रहने वाले, दुनिया के वाले लोग. हर्षवर्धन.

शराब

मुझको मत पी बहुत खराब हूँ मैं, तुझको पी जाउँगी,शराब हूँ मैं. मेरा वादा है अपने आशिकों से, रुसवा कर जाउँगी,शराब हूँ मैं. है बदन और दिमाग़ मेरी गिज़ा, नोश फ़रमाउँगी,शराब हूँ मैं. तुम मुझे क्या भला ख़्ररीदोगे, तुम को बिकवाउँगी,शराब हूँ मैं.

ब्लाग

उसने ब्लाग पर , अपनी पहली कविता सुबह सात बजे पोस्ट की थी. उसकी सोच के, सीमान्त तक भी, कविता में कोई नुक़्स, ढूँढे नहीं मिलता था. कविता में व्यंग, अपनी गुदगुदाती, चुभाती,चिढाती, अदा के साथ मौज़ूद था. टैक्नीकली भी, उसे हिन्दी मास्साब, ने विश्वास दिलाया, कविता ऐब्सोल्यूट्ली फ़्लौलेस थी. उसे विश्वास था, वो विशिष्ठ मस्तिष्कों, के आकर्षण का केन्द्र, बन जाने के लायक कविता थी. कविता में, पहाड़ी नदी की, लय थी,चंचलता थी, कविता अनूठी थी ऐसा वो सोचता था. खैर..... कविता पोस्ट करते ही, उसने इन्टर्नेट की, दुनिया में विचरने वाले, सभी परिचित प्राणियों को, पोक करके,वौल पर लिख कर, मैसेज से और ई-मेल से, सूचित कर दिया. उसे कौमेन्ट्स की पतीक्षा थी, ढेर सारे कौमेन्ट्स, तालियों जैसे कौमेन्ट्स, पंखों जैसे कौमेन्ट्स, स्पाट लाइट जैसे कौमेन्ट्स. बार बार पेज रीफ़्रेश, करता था और नज़र, जाती थी कौमेन्ट्स पर, उम्मीदों से भरी नज़र, पर लौट आती थी निराश. हम फ़लाँ वेब्साइट पर, आपका स्वागत करते हैं, बस एक यह मैसेज, उसे कुरुपा के मुँह चिढाते, आईने जैसा लगने लगा था. तीन घण्टे...... और एक भी कौमेन्ट, पोस्ट पर न था, जी ब

दोस्ती ख़त्म.

तुम्हारी मेरी दोस्ती आज से ख़त्म. कारण. जब भी दाद की आरज़ू में मैंने कोइ शेर पढ़ा , तुम और सभी लोगों की तरह खामखाँ हँसते रहे. तुम्हारी ईमानदारी ने तुम्हारा हाजमा खराब किया है, मेरा ज़रा सा झूठ तुम्हारे पेट में ऐंठन पैदा करता है. तुम मेरे अहं की ज़रा सी भी परवाह नहीं करते हो, मेरी मदद लेने में तुम्हारी खुद्दारी आड़े आ जाती है. मैं सारा दिन जिन सुडोकू पहेलियों को सुलझाता हूँ, उन्हें तुम बेदर्दी से वक़्त की बर्बादी करार देते हो. मैं सुभीते के साथ अपने पिता के पैरों पर चलता हूँ, तुम मुझे खुद के पैरों पर खड़े होने की सलाह देते हो. जो डिग्रियाँ मेरे बैठक की दीवरों पर शान से सजी हैं, तुम जानते हो उन्हें मैंने किन तरकीबों से हासिल किया है. मौका आने पर तुमने हमेशा नमकीन की पेशकश की, असली मद का खर्च हमेशा मेरी ही जेब से हुआ. इसलिये तुम्हारी मेरी दोस्ती आज से ख़त्म हर्षवर्धन.

श्रेय-सज़ा

मैंने छुपाकर कई काम ऐसे किये, जो आमतौर पर लोग दिखाकर करते. मैंने छुपाकर कई काम ऐसे किये, जो शायद लोग भी छुपाकर करते. पहले वाले कामों का श्रेय नहीं मिला, दूसरे वाले कामों की सज़ा नहीं मिली. हर्षवर्धन.

पूछता है दिमाग़ का पहरा

पूछता है दिमाग़ का पहरा, नक़ाब है या आईना चेहरा. उरवाँ रह गया हक़दार का सर, सज गया और किसी सर सेहरा. सूरते हाल का बायस क्या है, रिआया गूँगी या हाक़िम बहरा. दिलाये याद सबक दोस्ती का, पीठ पर ज़ख्म है बड़ा गहरा. हर्षवर्धन.

जाते हैं.

एक झूला कल की आस झूलते जाते हैं, हम अपना इतिहास भूलते जाते हैं. खरबूजों की बात छोड़िये दुनिया में, आसमान भी रंग बदलते जाते हैं. हैं कुछ ऐसे सम्हल सम्हल कर गिरते हैं, कुछ ऐसे गिर गिर के सम्हलते जाते हैं. आज फिर नए फूल खिले हैं बगिया में, जाते जाते लोग मचलते जाते हैं. पाप पुण्य की हथेलिओं के बीच दबे, मेरे सब अरमान मसलते जाते हैं. जीत सका है कौन वक़्त की महफ़िल में, खेल,जुआरी,दाँव बदलते जाते हैं. हर्षवर्धन.

क्या देखा?

हम से मत पूछिये साहब के हम ने क्या देखा, हम ने दुनिया के रंग-ओ-बू का तमाशा देखा. भरी बहार में देखे कई ग़ुल मुरझाते, कागज़ी फूलों को ग़ुलदानों में सजता देखा. दहेज़ लेता हुआ मजनूँ हम को आया नज़र, हम ने एक लैला को तन्दूर में जलता देखा. हम्ने देखी है एक हद से गुजरती हुई भूख, तिफ़्ल का ग़ोश्त भी बाज़ार में बिकता देखा. हुआ जब किस्सा-ए-तिज़ारते ताबूत का ज़िक्र, हमने सरहद पर अपना लाडला डटा देखा. हम से मत पूछिये साहब के हम ने क्या देखा, हम ने दुनिया के रंग-ओ-बू का तमाशा देखा.

अध्ययनशाला.

हमारे स्कूल में सारे क्लासेस ए.सी. हैं, ब्लैकबोर्ड की जगह प्रोजेक्टर इस्तेमाल होते हैं, तैराकी,घुडसवारी,बिलिअर्ड्स,स्क्वैश,गोल्फ़ की सुविधा है, सब छात्रों को लैप्टौप दिया जाता है. अंग्रेजी के इतर भाषा का प्रयोग वर्जित है. विदेशी भाषा भी सिखाई जाती है, स्कूल कि युनिफ़ोर्म नामी डिज़ाइनर की है, पार्किंग,औडिटोरियम,जिम्नेसिअम,इन्टेर्नेट. क्या नहीं है हमारे पास. आप ऐड्मिशन लीजिये, हम कुछ अच्छे शिक्षक भी ढूँढ लेंगे.