गिर्दा
तुम हमेशा पहाड़ में रहे,
उसके सभी सरोकारों में रहे,
चाहते तो सरोकारों की जगह,
सरकारों में भी रह सकते थे.
बाढ़ पर उत्तरकाशी रहे,
पेड़ कटने पर जंगल में.
भीड़ में लाठियाँ खाते रहे,
भीड़ पर राज कर सकते थे.
तुम जन की आवाज़ में रहे,
आवाज़ के शब्दों में रहे,
होली गाई, तो जाग्रिति की,
रंग बरसे भी गा सकते थे.
तुम इतिहास बनते-बनाते रहे.
तुम विश्वास बनते बनाते रहे.
हमेशा सुनाई,मनवाई नहीं,
चाहते तो मनवा सकते थे.
तुम लिखते लिखते गीत हो गए,
तुम गा गा कर संगीत हो गए,
तुम रंगकर्मी के कर्म में रहे,
उसके ग़ुरूर में रह सकते थे.
पहाड़ का सरोकार,पहाड़ के जन की आवाज़,पहाड़ का गीत मर नहीं सकता.गिर्दा तुम मर नहीं सकते.तुम ज़िन्दा हो और सदा रहोगे.
उसके सभी सरोकारों में रहे,
चाहते तो सरोकारों की जगह,
सरकारों में भी रह सकते थे.
बाढ़ पर उत्तरकाशी रहे,
पेड़ कटने पर जंगल में.
भीड़ में लाठियाँ खाते रहे,
भीड़ पर राज कर सकते थे.
तुम जन की आवाज़ में रहे,
आवाज़ के शब्दों में रहे,
होली गाई, तो जाग्रिति की,
रंग बरसे भी गा सकते थे.
तुम इतिहास बनते-बनाते रहे.
तुम विश्वास बनते बनाते रहे.
हमेशा सुनाई,मनवाई नहीं,
चाहते तो मनवा सकते थे.
तुम लिखते लिखते गीत हो गए,
तुम गा गा कर संगीत हो गए,
तुम रंगकर्मी के कर्म में रहे,
उसके ग़ुरूर में रह सकते थे.
पहाड़ का सरोकार,पहाड़ के जन की आवाज़,पहाड़ का गीत मर नहीं सकता.गिर्दा तुम मर नहीं सकते.तुम ज़िन्दा हो और सदा रहोगे.
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंगिर्दा से आपके प्रेम को नमन !
जवाब देंहटाएंneeraj bhai aamad kaa shukriyaa.
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