उसने ब्लाग पर , अपनी पहली कविता सुबह सात बजे पोस्ट की थी.  उसकी सोच के, सीमान्त तक भी, कविता में कोई नुक़्स, ढूँढे नहीं मिलता था.  कविता में व्यंग, अपनी गुदगुदाती, चुभाती,चिढाती, अदा के साथ मौज़ूद था.  टैक्नीकली भी, उसे हिन्दी मास्साब, ने विश्वास दिलाया, कविता ऐब्सोल्यूट्ली फ़्लौलेस थी.    उसे विश्वास था, वो विशिष्ठ मस्तिष्कों, के आकर्षण का केन्द्र, बन जाने के लायक कविता थी.  कविता में, पहाड़ी नदी की, लय थी,चंचलता थी, कविता अनूठी थी ऐसा वो सोचता था.  खैर.....  कविता पोस्ट करते ही, उसने इन्टर्नेट की, दुनिया में विचरने वाले, सभी परिचित प्राणियों को, पोक करके,वौल पर लिख कर, मैसेज से और ई-मेल से, सूचित कर दिया.  उसे कौमेन्ट्स की पतीक्षा थी, ढेर सारे कौमेन्ट्स, तालियों जैसे कौमेन्ट्स, पंखों जैसे कौमेन्ट्स, स्पाट लाइट जैसे कौमेन्ट्स.  बार बार पेज रीफ़्रेश, करता था और नज़र, जाती थी कौमेन्ट्स पर, उम्मीदों से भरी नज़र, पर लौट आती थी निराश.  हम फ़लाँ वेब्साइट पर, आपका स्वागत करते हैं, बस एक यह मैसेज, उसे कुरुपा के मुँह चिढाते, आईने जैसा लगने लगा था.  तीन घण्टे...... और एक भी कौमेन्ट, पोस्ट पर न था, जी ब...