वक्त के पाँव का वो आबला.








राह यारी की, कहाँ आसां है?

कदम पर, सूख जाता है गला.


कैसा? किसका? भला कहाँ का है?

है जो आवारा बादल मनचला.


करेगा कल की रोशनी की जुगत,

आज जो सांझ का सूरज ढला.


रही इंसानियत का वो टुकड़ा,

मानिंद-ए-रोज़ फिर थोड़ा गला.


रिसते रिसते कहानी लिखता है,

वक्त के पाँव का वो आबला.

आबला= छाला

मानिंद-ए-रोज़=रोज़ की तरह.

टिप्पणियाँ

  1. Very well said...there is no evading the inevitable...Waqt to sabko taulta hai...maninde roz phir thoda gala...deep insight:)

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  2. Very real !!
    This Realism in your poetries makes me read them again & again dadda..
    Each poetry says something very true...

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  3. करेगा कल की रोशनी की जुगत,
    आज जो सांझ का सूरज ढला.

    जीवन के यथार्थ की बेहतरीन प्रस्तुति...

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  4. रिसते रिसते कहानी लिखता है,

    वक्त के पाँव का वो आबला.

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  5. रिसते रिसते कहानी लिखता है,
    वक्त के पाँव का वो आबला.

    वाह वाह .बहुत सुन्दर है.

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  6. आप सब सुधिजनों का बहुत बहुत धन्यवाद.

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  7. खूबसूरत कलमकारी.....! :) कुछ आपकी नज़र....!
    वक़्त के आबलों की किस्मत में मंजिल नहीं होती....
    मंजिलों पर मगर कहानिया ज़रूर पहुँचती हैं....!

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  8. स्मृति जी,आप सही कहती हैं.वक्त की तो कोई मंजिल हो नहीं सकती पर जो कहानियाँ वक्त लिखता है,उन्हें अपनी मंजिल मिल ही जाती है.

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  9. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  10. sundar kavita ..harsh ji..behad pasand aayi... kal yaani shukrvaar kee charcha mei charchamanch par aapki kavita blog hoga .. aapka dhnyvaad

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  11. डा. गैरोला उत्साहवर्धन का बहुत बहुत धन्यवाद.

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  12. आप का ब्लॉग फोलो करना चाह रही हूँ किन्तु मेरा अकाउंट काम नहीं कर रहा है.. मकर संक्रांति पर बधाई

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  13. रिसते रिसते कहानी लिखता है,

    वक्त के पाँव का वो आबला

    बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..

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  14. बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति|मकर संक्रांति पर बधाई

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  15. शर्मा जी एवं पतली(क्या संबोधन दूं?) उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.मकर संक्रांती की बधाई.

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  16. कमाल का लिखते हो अन-कवि महोदय.कवि होते तो क्या करते.
    रिसते रिसते कहानी लिखता है,

    वक्त के पाँव का वो आबला.

    हमारे पाँव में आबले बहुत हैं. रिस गए तो दिखाऊंगा
    माज्रत के साथ एक बदलाव लिख रहा हूँ .
    राह यारी की, कहाँ आसां है?
    हर कदम , सूख जाता है गला.

    आशा है पसंद आएगा

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  17. सेज बाब साहब ,आपका मशवरा सर आँखों पर.

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  18. क्या खूब लिखते हो हर्ष .... बार बार पढने का दिल किया...

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