कभी कभी यों भी हमने... निदा फाजली के इस कलाम को जगजीत सिंह ने अपनी धुन से संवारा है.

कभी कभी यों भी हमने...

निदा फाजली के इस कलाम को जगजीत सिंह ने अपनी धुन से संवारा है.





कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है

हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है

उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्यों
आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारण धमकाया है

कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें की
घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है



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