राह यारी की, कहाँ आसां है? कदम पर, सूख जाता है गला. कैसा? किसका? भला कहाँ का है? है जो आवारा बादल मनचला. करेगा कल की रोशनी की जुगत, आज जो सांझ का सूरज ढला. रही इंसानियत का वो टुकड़ा, मानिंद-ए-रोज़ फिर थोड़ा गला. रिसते रिसते कहानी लिखता है, वक्त के पाँव का वो आबला. आबला = छाला मानिंद-ए-रोज़=रोज़ की तरह.
दिल की फ़र्माइश है सर आँखों मगर, एक पूरी हो तो फ़िर इक और है. ख़त्म सुनता था हुए राजा नवाब, पर हक़ीक़ी वाक़या कुछ और है. आदमी अब क्या करे शर्मो लिहाज, जिस भी सूरत जीतने का दौर है. तुम भले इन्कार कर लो आग से, कह रहा उठता धुवाँ कुछ और है. बेअसर है झिंगुरों का सा रियाज़, सुर को साधे जो गला कुछ और है. खुश वो,जो बिक जाए ऊँचे दाम में, आज तो बाज़ार ही सिरमौर है.
इंसानियत के नाते,अपनी ख़ुदी से प्यार, तुमको भी बेशुमार है,मुझको भी बेशुमार. चोर और लुटेरे में एक को चुन लें, तुमको भी इख़्तियार है, मुझको भी इख़्तियार. राज करने वाले,आला दिमाग़ पर, तुमको भी ऐतबार है, मुझको भी ऐतबार. हम पे चोट कुछ नहीं,मैं पे एक वार, तुमको भी नागवार है,मुझको भी नागवार. हालात को सुधारने आएगा मसीहा, तुमको भी इन्तज़ार है,मुझको भी इन्तज़ार.
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