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दे दिया.

इतने भी हम खिलाफ़ नहीं तेरे, ऐ गरीब, तेरा शोर सुन के तुझको, खाना तो दे दिया. ताकत की हवाओं में ,उड़ जाएँ तेरे तीर, ये तय किया पर तुझको निशाना तो दे दिया. सब खर्च किया हमने ,तेरे ही नाम पर, नाम ही को सही ,तुझको खज़ाना तो दे दिया. भूखा है तू ,नंगा है तू ,पर पास बम तो है, ले तू भी फख्र कर ले ,बहाना तो दे दिया. हर हाल ज़िंदा रहना ,ही है तेरा मकसद, हर हाल ज़िंदा रहने ,ठिकाना तो दे दिया.

मकसद.

मेरा मकसद है मेरे राज पर न आँच आए, ये और बात मेरी बात सही हो कि न हो. जो हैं गरीब तो सदियों से मसीहा भी हैं, ये और बात है कंधों पे सलीब हो कि न हो. रोज़ी,रोटी,मकान,कपड़ा कागज़ों पर है, ये और बात है हमको नसीब हो कि न हो. फिज़ा में तैर रही एक बुज़ुर्ग बीन की धुन, ये और बात है भैसों पे असर हो कि न हो. राज लोगों का है लोगों के लिए लोगों से, ये और बात है लोगों की क़द्र हो कि न हो.

ऐसे ही.

बीच दोनों के एक इश्क की नदी है जरूर, यूँ समंदर को हिमालय नहीं पिघलते हैं. आन एक ऐसा खिलौना है,जिसकी खातिर, बुजुर्गवार भी बच्च्चों की ढब मचलते हैं. मेरे मंदिर के दिये,और तेरी मस्ज़िद के चिराग, बहुत आँधी चली पर साथ साथ जलते हैं. तुम अपनी रौ बहे तो हम भी अपनी रौ बहके, सम्हलते आप वहाँ हम यहाँ सम्हलते हैं. खुदा ही जाने के ये दोस्त कहाँ पहुँचेंगे, मंजिलें दो हैं, मगर साथ साथ चलते हैं. मेरे पैरों में है दस्तूर की ज़ंजीर मगर, मेरे अरमान इक उड़ान को मचलते हैं.

मगर बदनाम है.....पैसा.

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लुभाता है, सताता है, रुलाकर फिर हंसाता है, बिगाड़े भी, बनाता है, ऐसा हुक्काम है. पैसा. बड़े दरबार में , अदालतों में, और खुदा के घर, कभी आता था दबे पाँव, अब सरेआम है. पैसा. मुल्क ने मेरे भी, तस्वीर उसकी खींच डाली है, रिआया की, कुल जमा सोच का अंजाम है. पैसा. यही इक दूसरे पर आपकी उंगली उठाता है. मिले शहर के हर एक घर, मगर बदनाम है. पैसा. ज़रूरी बेज़रूरी,ये सभी, इसपर मुन्ह्स्सर है, तुम्हारी शख्सियत की तोल का आयाम है. पैसा.

वक्त के पाँव का वो आबला.

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राह यारी की, कहाँ आसां है? कदम पर, सूख जाता है गला. कैसा? किसका? भला कहाँ का है? है जो आवारा बादल मनचला. करेगा कल की रोशनी की जुगत, आज जो सांझ का सूरज ढला. रही इंसानियत का वो टुकड़ा, मानिंद-ए-रोज़ फिर थोड़ा गला. रिसते रिसते कहानी लिखता है, वक्त के पाँव का वो आबला. आबला = छाला मानिंद-ए-रोज़=रोज़ की तरह.