ऐसे ही.
बीच दोनों के एक इश्क की नदी है जरूर,
यूँ समंदर को हिमालय नहीं पिघलते हैं.
आन एक ऐसा खिलौना है,जिसकी खातिर,
बुजुर्गवार भी बच्च्चों की ढब मचलते हैं.
मेरे मंदिर के दिये,और तेरी मस्ज़िद के चिराग,
बहुत आँधी चली पर साथ साथ जलते हैं.
तुम अपनी रौ बहे तो हम भी अपनी रौ बहके,
सम्हलते आप वहाँ हम यहाँ सम्हलते हैं.
खुदा ही जाने के ये दोस्त कहाँ पहुँचेंगे,
मंजिलें दो हैं, मगर साथ साथ चलते हैं.
मेरे पैरों में है दस्तूर की ज़ंजीर मगर,
मेरे अरमान इक उड़ान को मचलते हैं.
बीच दोनों के एक इश्क की नदी है जरूर,
जवाब देंहटाएंयूँ समंदर को हिमालय नहीं पिघलते हैं.
लाज़वाब ...सभी शेर बहुत उम्दा..
धन्यवाद शर्मा साहब.दाद मिलती है तो लिखते रहने का मन करता है.
जवाब देंहटाएंBahut Khoob...sir... Facebook par bhi padhne ko mili....dhanyavaad..
जवाब देंहटाएंthanks Suryadeep.I;m glad you visited.
जवाब देंहटाएंअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
जवाब देंहटाएंमेरे अरमान इक उड़ान को मचलते हैं....
जवाब देंहटाएंबढ़िया है....
thanks pushpendra ji.
जवाब देंहटाएंbeautiful
जवाब देंहटाएंthanks bhumika.
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएंnice poem
जवाब देंहटाएंthanks anonymous.
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