मगर बदनाम है.....पैसा.
लुभाता है, सताता है, रुलाकर फिर हंसाता है,
बिगाड़े भी, बनाता है, ऐसा हुक्काम है.
पैसा.
बड़े दरबार में , अदालतों में, और खुदा के घर,
कभी आता था दबे पाँव, अब सरेआम है.
पैसा.
मुल्क ने मेरे भी, तस्वीर उसकी खींच डाली है,
रिआया की, कुल जमा सोच का अंजाम है.
पैसा.
यही इक दूसरे पर आपकी उंगली उठाता है.
मिले शहर के हर एक घर, मगर बदनाम है.
पैसा.
ज़रूरी बेज़रूरी,ये सभी, इसपर मुन्ह्स्सर है,
तुम्हारी शख्सियत की तोल का आयाम है.
पैसा.
घर से निकालकर आदमी को दौडाता है पैसा.
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति...
अच्छी कविता है .लिखते रहो मेरे भाई.
जवाब देंहटाएंपैसे की महिमा निराली है
उसका कोई नहीं जिसकी जेब खाली है.
आज के समय में पैसा ही सब कुछ होगया है..सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंachchi rachna...! :)
जवाब देंहटाएंpaisa amar hai ...
जवाब देंहटाएंहर्ष जी ,
जवाब देंहटाएंज़रूरी बेज़रूरी,ये सभी, इसपर मुन्ह्स्सर है,
तुम्हारी शख्सियत की तोल का आयाम है.
पैसा.
बहुत खूब ....सही फरमाया आपने ...
सही कहा. पैसा सर्वोपरि हो गया है.
जवाब देंहटाएंतुम्हारी शख्सियत की तोल का आयाम है पैसा
जवाब देंहटाएंयथार्थ की सुन्दर अभिव्यक्ति !
'यस्य गृहे टका नास्ति हाटके टकटकायते'
बड़े दरबार में , अदालतों में, और खुदा के घर,
जवाब देंहटाएंकभी आता था दबे पाँव, अब सरेआम है.
पैसा.
सत्य वचन ...
पर इसे ज़रा समझायिए:
रिआया की, कुल जमा सोच का अंजाम है.
पैसा.
आभा जी,
जवाब देंहटाएंजिस देश के अधिकतम शिक्षा संस्थान,एन जी ओ ,इत्यादि इत्यादि का मुख्य उद्देश्य पैसे बढ़ाने का हो वहाँ पर मैं और कह भी क्या सकूंगा.शिक्षा का उद्देश्य रोज़गार,नौकरी का उद्देश्य सेवा के स्थान पर धनोपार्जन.और क्या कहूँ?
बहुत ही सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंek ankavi kaa ye bayaan....kavi hotaa to naa jaane kyaa kahataa ...vaah bhaayi vaah....!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....सही फरमाया आपने
जवाब देंहटाएंपैसे की महिमा पर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सटीक प्रस्तुति ...
So true Harsh Da....
जवाब देंहटाएंMoney is power, freedom, a cushion, the root of all evil, the sum of blessings.
सही कहा आज के समय में पैसा ही सब कुछ होगया है| सटीक प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंजैसे आता है, वैसे ही जाता भी है पैसा -- दबे पाँव....
जवाब देंहटाएंI don't know what you call it in the classification of poetry, but for now, I will call it 'Realism Poetry'...And you definitely are making a strong mark in this field..Without extrapolation, you hit hard the reality of life in such a poetic way...Wonderful
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएं---------
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प्रिय बंधुवर हर्षवर्धन वर्मा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
लुभाता है, सताता है, रुलाकर फिर हंसाता है,
बिगाड़े भी, बनाता है, ऐसा हुक्काम है पैसा
सच कहते हैं जनाब ! पैसे का खेल निराला है …
… और पैसा बोलता है …:)
ख़ूबसूरत ब्लॉग और प्यारी रचनाएं !
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bhai harshvardhan ji bahut sundar rachana ke liye aapko badhai
जवाब देंहटाएंजात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
जवाब देंहटाएंलिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |
लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |
पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||
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