क्या?
बिक नहीं सकता जो, उस की क्या कीमत
भाव लगे जिसका,फिर उस का मोल क्या।
जूं भी न रेंगेगी चीखों के बावजूद,
बहरों के मुहल्ले में,मुनादी का ढ़ोल क्या।
दिमाग़ कैसे मापे, गहराईयाँ दिल की
ताक़त के तराज़ू में, चाहत का तोल क्या।
जज़्बात कहाँ समझें, सियासत के मसाइल
क्या फ़र्क जो तू बोले, अगर न बोल क्या।
रंग भी न बदले है, उस बेशर्म का चेहरा
जो साजिशें छुपी रहें खुल जाए पोल क्या।
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