आईना है ये कलाम.
कागज़ी संवेदना, है कागज़ी
सब इंतज़ाम,
कागज़ी नारे तुम्हारे, हैं कागज़ी
वादे तमाम.
है नहीं जो, बाँटते हो, आप
वो लोगों के बीच,
जो है वो, मिलबाँट कर
खाएगा हमारा निजाम.
मत के मतवालों ने कैसा
कायदा ये कर दिया,
नौकरों का घर पे कब्ज़ा और मालिक
लामुकाम.
हम तो डर जाते सिपाही दूर
से ही देख कर,
और अपना वो सिपाही चोर को
करता सलाम.
और कब तक ज़ब्त अपना आजमाते
जाओगे?
आज के हालात हैं अपनी ही
चुप्पी का इनाम.
हम भी बगलें झाँकते हैं
शक्ल इसमें देखकर,
आज की तारीख का एक आईना है
ये कलाम.
लामुकाम= बेघर.
ज़ब्त=धैर्य.
कलाम=कविता.
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