मगर बदनाम है.....पैसा.
लुभाता है, सताता है, रुलाकर फिर हंसाता है, बिगाड़े भी, बनाता है, ऐसा हुक्काम है. पैसा. बड़े दरबार में , अदालतों में, और खुदा के घर, कभी आता था दबे पाँव, अब सरेआम है. पैसा. मुल्क ने मेरे भी, तस्वीर उसकी खींच डाली है, रिआया की, कुल जमा सोच का अंजाम है. पैसा. यही इक दूसरे पर आपकी उंगली उठाता है. मिले शहर के हर एक घर, मगर बदनाम है. पैसा. ज़रूरी बेज़रूरी,ये सभी, इसपर मुन्ह्स्सर है, तुम्हारी शख्सियत की तोल का आयाम है. पैसा.