खंज़र न मार.
मुफलिसी से बेदिली, पसरी थी घर में, चार सू, आज वो बाज़ार से, ले आया कुछ रुपयों का प्यार. जिस्म है, ज़मीर भी, ममता भी, बिकने में शुमार, वाह री दुनिया की तिज़ारत, आह इसका कारोबार. है सभी कुछ पास, या, कुछ भी नहीं है इसके पास, इक मरुस्थल के लिए, क्या है खिज़ा, है क्या बहार. लुट भी जाने दो, दीवाने को, भरे बाजार में, यार से, गमख्वार से,कब तक रहे वो होशियार. रहबरी से राहबर, बेज़ार मुझको यूँ न कर, थपथपाने के बहाने, पीठ पर खंज़र न मार. मुफलिसी=गरीबी, चार सू=हर तरफ़, तिज़ारत=व्यापार, खिज़ा=पतझड़, घम्ख्वार=दुःख का सांझेदार, रहबरी=नेतृत्व, राहबर=नेतृत्व करने वाला, बेज़ार=उदासीन.