और है.
दिल की फ़र्माइश है सर आँखों मगर, एक पूरी हो तो फ़िर इक और है. ख़त्म सुनता था हुए राजा नवाब, पर हक़ीक़ी वाक़या कुछ और है. आदमी अब क्या करे शर्मो लिहाज, जिस भी सूरत जीतने का दौर है. तुम भले इन्कार कर लो आग से, कह रहा उठता धुवाँ कुछ और है. बेअसर है झिंगुरों का सा रियाज़, सुर को साधे जो गला कुछ और है. खुश वो,जो बिक जाए ऊँचे दाम में, आज तो बाज़ार ही सिरमौर है.