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बदगुमान कहे.

अता हुआ है आदमी को ऐसा मुस्तक्बिल, पा जाये सब, मगर पा कर भी परेशान रहे. फ़िक्र में डूब रहे सब अदीब-ओ-दानिशमन्द, एक ग़ाफ़िल को मगर पूरा इत्मिनान रहे. कहर देखा तेरा, तेरी नवाज़िशें देखीं, कोइ दो चार दिन हम भी तेरे मेहमान रहे. कोई तो सीख गया चन्द किताबी बातें. किसी के हिस्से ज़िन्दगी के इम्तिहान रहे. आज जी आया जी भर के जी की बात कहूँ, जी में आए तो मुझे कोई बदगुमान कहे.