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ओ बादल

ओ बादल,आजकल तुम हमारे शहर का रास्ता भूल गये हो , कभी आ भी जाते हो तो बरसना,भिगोना भूल जाते हो. तुम आओगे,ये सोचकर हमने चार लेन की सड़कें बनाईं, स्वागत देखना छोड़,तुम काटे गये पेड़ों को गिनते रहते हो. हमने तुम्हारे लिये गाड़ियाँ बनाई,आराम से आओगे सोचकर, गाड़ि छोड़,तुम गाड़ी के पीछे छूटने वाला धुआँ देखते रहते हो. हमने तुम्हारी सहूलियत के लिये एसी का इन्तजाम भी किया, हमारी नीयत देखना छोड़,तुम पर्यावरण वाले गीत गाते रहते हो. ओ बादल,आजकल तुम चुनावी नेता जैसा बर्ताव करने लगे हो, घुमड़ कर आते हो,गरज कर आश्वासन देते हो,मुड़कर चले जाते हो. अब हम जंगल काट कर वहाँ नई सड़कें बनाने में लगे हुए हैं, शहर की सड़कें देख कर नाराज़ हो,क्या पता इस रास्ते से आ जाओ.

गड़बड़ा

वो आमतौर पर जो लोग बड़बड़ाते हैं, हम उसे शेर बता,तुमको गड़बड़ाते हैं. ज़रा रुक और दिल में झाँक कर देख, कितने अरमान यहाँ पंख फड़्फड़ाते हैं. अपने हालात में क्या क्या पचाए बैठे हैं, ग़ुस्सा आ भी जाए,यों ही बड़बड़ाते हैं. बसंत रुत में जब फूल नए आते हैं, वो कहीं बैठ कर हिसाब गड़बड़ाते हैं. वो उनके हाथ में चप्पू मेरी नाव का है, ज़रा सी तेज़ हवा में जो हड़्बड़ाते हैं. यहाँ तो शाह का ईमान डोल जाता है, ग़नीमत है मेरे बस पैर लड़खड़ाते हैं.